रसीली भाभी और बारिश का एहसास : (भाग 2)

रसीली भाभी और बारिश का एहसास : (भाग 2)


गांव की गलियों में शाम के बाद हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। आसमान पर काले बादल छाए हुए थे और बिजली की चमक ने पूरे माहौल को एक रहस्यमयी एहसास से भर दिया था। घर के आंगन में मिट्टी की भीनी-भीनी खुशबू फैली हुई थी।

रसीली भाभी रसोई में थी, गीले कपड़ों में उनकी साड़ी बदन से चिपकी हुई थी। उनकी हरकतें धीमी और नाजुक थीं, मानो हर चीज़ अपने आप उनके आसपास रुक गई हो। उनके गीले बालों से पानी की बूंदें गिर रही थीं, जो उनके गालों से होते हुए उनकी गर्दन तक बह रही थीं। उनके चेहरे पर बारिश की ठंडक और एक अनकही खुशी थी।

अर्जुन, जो पड़ोस में ही रहता था, बरामदे में खड़ा यह सब देख रहा था। वह पहले भी रसीली भाभी को देख चुका था, लेकिन आज उनकी खूबसूरती उसे और भी मोह लेने वाली लग रही थी। भाभी ने जैसे ही उसकी ओर देखा, वह नजरें चुरा कर अंदर जाने लगा।

"अर्जुन!" भाभी ने मुस्कुराते हुए आवाज़ दी।
"जी भाभी..." अर्जुन ने धीरे से जवाब दिया, मानो उसकी आवाज़ भीग गई हो।
"इतनी बारिश हो रही है, अंदर आ जाओ। ठंड लग जाएगी," भाभी ने अपने कपड़ों का पल्लू ठीक करते हुए कहा।

अर्जुन थोड़ा झिझकते हुए आंगन में आ गया। बारिश तेज हो गई थी, और आंगन में खड़े दोनों के बीच बस बारिश की आवाज़ और बिजली की चमक थी। रसीली भाभी ने देखा कि अर्जुन पूरी तरह से भीग चुका है।

"तुम्हें कितनी बार कहा है कि छतरी लेकर आया करो। अब रुक जाओ, तुम्हारे कपड़े सुखा देती हूं," भाभी ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा।

अर्जुन की सांसें तेज हो गईं। भाभी ने जैसे ही उसके हाथ से उसका शॉल लिया, उनके हाथ आपस में टकरा गए। अर्जुन ने एक पल के लिए भाभी की आंखों में देखा, और वहां एक गहराई थी, जो उसे और खींच रही थी।

भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारी ये आदत नहीं सुधरेगी। चलो, अंदर आ जाओ।"

भीगे हुए अर्जुन को लेकर भाभी ने उसे दहलीज पर बिठाया। उन्होंने एक तौलिया लाकर उसके सिर पर रखा और धीरे-धीरे उसके बाल पोंछने लगीं। दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी थी, लेकिन इस खामोशी में भी एक किस्म का रोमांच था।

"भाभी...आप बारिश में क्यों भीग रही थीं?" अर्जुन ने थोड़ा साहस जुटाकर पूछा।
भाभी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "बारिश तो दिल को सुकून देती है। और वैसे भी, कभी-कभी खुद को भूल जाना अच्छा लगता है।"

अर्जुन ने भाभी के शब्दों में छिपे एहसास को महसूस किया। उनके बीच बारिश का यह लम्हा जैसे समय को रोक रहा था। भाभी ने जब तौलिया हटाया, तो उनकी उंगलियां अर्जुन के गालों को हल्के से छू गईं। अर्जुन की धड़कनें और तेज हो गईं।

"अब कपड़े बदल लो, वरना ठंड लग जाएगी। मैं तुम्हारे लिए चाय बना देती हूं," भाभी ने कहा और रसोई की ओर बढ़ गईं।

अर्जुन वहीं बैठा था, सोच में डूबा हुआ। भाभी के स्पर्श, उनकी मुस्कान, और उनकी बातों का जादू जैसे उसके दिमाग पर छा गया था। वह जानता था कि यह एहसास बस एक सपने जैसा है, लेकिन फिर भी वह खुद को रोक नहीं पा रहा था।

क्या अर्जुन और भाभी के बीच यह बारिश का रिश्ता आगे बढ़ेगा?
या यह सिर्फ एक खूबसूरत पल बनकर रह जाएगा?
भाग 3 में जानिए, जब बारिश की यह कहानी एक नया मोड़ लेगी।

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